
अबूझमाड़ का रहस्यमय फरसबेड़ा जलप्रपात
मुख्य संपादक बिन्देश पात्र
नारायणपुर – अबूझमाड़ का फरसबेड़ा झरना प्रकृति की गोद में छिपा एक ऐसा कोहिनूर है, जिसकी खूबसूरती अभी दुनिया की नजरों से ओझल है।
नारायणपुर जिला अबूझमाड़ के घने जंगलों के बीच स्थित यह जलप्रपात अपने अद्भुत सौंदर्य और रहस्यमय वातावरण के कारण किसी फिल्मी दृश्य जैसा लगता है।
कई लोग यहां पहुंचने की कोशिश की और अपने कैमरे में कैद करने के बारे में सोचा पर माओवादियों ने इसकी फोटो लेने से भी फरमान जारी कर दिया था और मौत के घाट उतरने की धमकी दी थी।
मीडिया जगत में सबसे पहले दंडकारण्य दर्पण न्यूज की टीम ने इस खूबसूरत झरना तक पहुंचने की हिम्मत की है और लोगों को इसकी झलक दिखाई पाई है, झरने की भव्यता को सुरक्षा कारणों से नहीं हो पाता दर्शन यहां के स्थानीय विशेष पिछड़ी जनजाति आदिवासी मानते हैं कि यदि सरकार आधारभूत सुविधाएं और सुरक्षा सुनिश्चित करे, तो यह झरना देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन सकता है,
आदिवासी अंचल के विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
अबूझमाड़ क्षेत्र अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति और रहस्यमयी भूगोल के कारण देश-विदेश में जाना जाता है, लेकिन इसके कई खूबसूरत स्थल आज भी मुख्यधारा से कटा हुआ हैं।
अब तक अबूझमाड़ अनसर्वेड है इसका सर्वे अब तक नहीं हो पाया है तो इसके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है।
ऐसा ही एक अनछुआ प्राकृतिक सौंदर्य है – फरसबेड़ा जलप्रपात, जो अबूझमाड़ की घने जंगलों और पहाड़ों में छिपा हुआ है। यह जलप्रपात मानसून के समय अपनी पूरी भव्यता में होता है।
लगभग 120 फीट की ऊंचाई से गिरता है जलधारा
तरलामरका पहाड़ी से निकलने वाली ओरवेर नदी की जलधारा जब लगभग 120 फीट की ऊंचाई से दूध जैसी सफेदी में गिरती है, तो दृश्य अत्यंत मनोहारी होता है। स्थानीय लोग इसे ‘ओरवेर झरना’ के नाम से जानते हैं। लेकिन यह प्राकृतिक धरोहर आज भी पर्यटकों की नजरों से ओझल है।
मुख्य कारण है – क्षेत्र में नक्सल प्रभाव और बुनियादी सुविधाओं का अभाव।
जिला मुख्यालय से लगभग 75 किमी दूर कुतुल से 30 किलो मीटर के अंतर्गत धुरबेड़ा ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम फरसबेड़ा जलप्रपात तक पहुंचना आसान नहीं है।
बरसात के मौसम में यहां पहुंचने के लिए कुतुल से करीब 30 किमी बीहड़ जोखिम भरा पगडंडी से मोटर सायकल या पैदल सफर तय करना पड़ता है।
लेकिन रास्तों की हालत और सुरक्षा की चिंता पर्यटकों को यहां आने से रोक देती है।
झरना पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग
स्थानीय आदिवासी बताते हैं कि यदि इस क्षेत्र तक सड़क और सुरक्षा की व्यवस्था हो जाए, तो यह झरना पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता है। यह न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार देगा, बल्कि क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को भी नया मंच मिलेगा। ग्रामीणों की मांग है कि सरकार और पर्यटन विभाग इस ओर ध्यान दे और इस क्षेत्र को पर्यटन मानचित्र पर लाने के लिए ठोस प्रयास करे। यदि सुरक्षा और आधारभूत ढांचा मजबूत किया जाए, तो अबूझमाड़ का यह अनमोल झरना देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है। फिलहाल, यह सौंदर्य अबूझमाड़ के जंगलों में ही कैद होकर रह गया है।
नक्सली दहशत भी बड़ा कारण:
प्राकृतिक सौदर्य से भरपूर फरसबेड़ा जलप्रपात लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर मनमोह लेता है। इस जगह जो भी जाता है वो इस झरने को निहारते मन नहीं भर पाता है। लेंकिन नक्सली दशहत के चलते दर्शनीय स्थल पर्यटकों से अछूता रह गया है। ग्रामीणों का कहना है कि इस क्षेत्र में आवागमन के लिए सड़क बन जाती है तो इस जलप्रपात को देखने के लिए देश से लेकर विदेश तक के लोग पहुंचते। इसे संवारने के लिए कोई पहल की जाती है तो यह एक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित हो सकता है।

प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ऐतिहासिकता और जैवविविधता
फरसबेड़ा न सिर्फ प्राकृतिक रूप से सुंदर है, बल्कि यह क्षेत्र स्थानीय संस्कृति और परंपराओं से भी जुड़ा हुआ है। यहां के ग्रामीण त्योहारों और विशेष अवसरों पर इस झरने के पास आकर सामूहिक पिकनिक मनाते हैं।
फरसबेड जलप्रपात छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में स्थित है, यह जलप्रपात अपनी प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए प्रसिद्ध है।
कुछ आकर्षक बातें हैं:
देवमाली से भी सुंदर है यहां के पहाड़ियां
फरसबेड जलप्रपात की ऊंचाई लगभग 120 फीट हैं
फरसबेड जलप्रपात के आसपास का क्षेत्र घने जंगलों से ढका हुआ है।
यहां जीवन स्वर्ग सा अनुभव बरसात के दिनों में बादलों से ढका रहता है मानो धरती और आसमान दोनों मिला हुआ है ।







