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उत्तर सबजोनल ब्यूरो भाकपा (माओवादी) : प्रवक्ता मंगली आरक्षण कटौती पर प्रेस विज्ञप्ति जारी की है।

 

 

उत्तर सबजोनल ब्यूरो भाकपा (माओवादी)

 

आरक्षण की सीमा को पार करने के नाम से आदिवासियों की, दलितों की आरक्षण कटौती करने वाली ब्राह्मणीय हिंदूत्व फासीवादी न्यायपलिका के फैसले का विरोध करो।

छत्तीसगढ़ उच्च न्यायलय ने 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा से बाहर जाकर सरकार आरक्षण बढ़ाने का रद्द करना, न्यायपालिका में बढ़ती ब्राह्मणीय हिंदुत्व फासीवादी विचार की फैसला है। भाजपा अपनी वोट बैंक बढ़ाने के चक्कार में आरक्षण बढ़ाया, उसको सही तर्क पेश न करते हुए आदिवासियों, दलितों के साथ धोखा दिया है। आज भाजपा-कॉंग्रेस एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रही है। लेकिन दोनों पार्टियां आदिवासी समुदाय और दलितों की आरक्षण की विरोधी चरित्र है। पिछले वर्ष की शीतकाली सत्र में मोदी सरकार संविधान में 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को समाप्त कर राज्यों ने अपनी राज्यों में आरक्षण को तय करने का संसाधनों पर मंजूरी लिए. छत्तीसगढ़ उच्च न्यायलय संविधान की संशोधन के विषय को जानते हुए ऐसा क्यों फैसला किया? इससे जग जाहिर होता है कि भाजपा-कांग्रेस पार्टियां जनता को दिशा भटकाने का काम करते हैं। असली मुद्दों से भटकाते हुए केंद्र-राज्य सरकारों ने जून में वन संरक्षण कानून, अगस्त में छत्तीसगढ़ सरकार पेसा नियम को लाया है यह दोनों कानून, आदिवासी जनता की जल-जंगल-जमीन अस्मिता-अस्तित्व और आजीविका को समाप्त कर विस्थापित करने का षड़यंत्र है । पेसा की ग्राम सभा की मूल अधिकार को समाप्त कर सलहाकार बना दिया है. इस मुद्दे को लेकर देश भर में मुख्यतः छत्तीसगढ़ में आदिवासी उठ खड़ी होकर आंदोलन की रास्ता अपना रही है। हक-अधिकार को छीनने वाली दोनों कानूनों को रद्द करने की आंदोलन की राह पकड़े है। इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए हाईकोर्ट में आरक्षण पर फैसला सुनाया गया है। इसकी भूरी प्रभाव आदिवासियों पर होने वाली फैसले के विरोध में आवाज उठाए, न्यायपालिका की चक्कर में फसें ताकी असली आंदोलन का दिशा भटक जाएं. न्यायपालिका शासन की किस तरह मदद करती है इसका ताजा उदाहरण है।

दूसरी ओर छत्तीसगढ़ की आदिवासी विद्यायकों ने केंद्र-राज्य सरकारों की आदिवासी विरोधी वन संरक्षण कानून, छत्तीसगढ़ पेसा कानूनों के बारे मे एक शब्द भी विरोध नहीं जताया गया हैं। लेकिन आरक्षण पर हाईकोर्ट फैसले के विरोध में एक जूट हुए है। इस मूद्दे पर एकजूट होना स्वागत है लेकिन दोनों कानूनों के बारे में एक शब्द नहीं बोलना. यानी देश- विदेशी पूँजिपतियों की पक्ष में खड़ा होना । आदिवासी समाज की नेतृत्व के नाम से ढोंगी नाटक कर पूंजिपतियों की • अनुकूल कानूनों की मौन से समर्थन देना, उनकी दिया हुआ फंड से चुनाव जीतना इनकी असली चरित्र है।

 

लेकर देश भर में मुख्यतः छत्तीसगढ़ में आदिवासी उठ खड़ी होकर आंदोलन की रास्ता अपना रही है। हक अधिकार को छीनने वाली दोनों कानूनों को रद्द करने की आंदोलन की राह पकड़े है। इस आंदोलन को कमजोर करने के लिए हाईकोर्ट में आरक्षण पर फैसला सुनाया गया है। इसकी भूरी प्रभाव आदिवासियों पर होने वाली फैसले के विरोध में आवाज उठाए, न्यायपालिका की चक्कर में फसें ताकी असली आंदोलन का दिशा भटक जाएं. न्यायपालिका शासन की किस तरह मदद करती है इसका ताजा उदाहरण है।

 

दूसरी ओर छत्तीसगढ़ की आदिवासी विद्यायकों ने केंद्र-राज्य सरकारों की आदिवासी विरोधी वन संरक्षण कानून, छत्तीसगढ़ पेसा कानूनों के बारे मे एक शब्द भी विरोध नहीं जताया गया हैं । लेकिन आरक्षण पर हाईकोर्ट फैसले के विरोध में एक जूट हुए है। इस मुद्दे पर एकजूट होना स्वागत योग्या है लेकिन दोनों कानूनों के बारे में एक शब्द नहीं बोलना. वानी देश विदेशी पूँजिपतियों की पक्ष में खड़ा होना । आदिवासी समाज की नेतृत्व के नाम से ढोंगी नाटक कर पूंजिपतियों की अनुकूल कानूनों की मौन से समर्थन देना, उनकी दिया हुआ फंड से चुनाव जीतना इनकी असली चरित्र है ।

 

आदिवासी जनता इन्हें खड़ा कर तुम समाज के पक्ष में हो या पूंजिपतियों की पक्ष में हो यह सवाल करना जरूरी है। आदिवासियों की आरक्षण कम करने वाली हाईकोर्ट फैसले के विरोध में संगठित होकर आंदोलन पर उतरें. आरक्षण की नाम पर वोट बैंक राजनीतिक पार्टियों की चरित्र को फर्दाफाश करो।

 

आरक्षण को वास्ताविक अमल करने के लिए संघर्ष करो । जन संख्या की आधार पर आरक्षण अमल करने, शासकीय, निजी सभी संस्थाओं में आरक्षण लागू करने का मुददे की लेकर संघर्ष करो

 

दिनांक 20/2022

मंगली

प्रवक्ता

Bindesh Patra

युवा वहीं होता हैं, जिसके हाथों में शक्ति पैरों में गति, हृदय में ऊर्जा और आंखों में सपने होते हैं।

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