header ads
कला और संस्कृतिछत्तीसगढ़धर्मपरम्परागतबस्तरसत्य की खोज

हल्बा गण की शौर्य बलिदान का सम्मान ,शक्ति दिवस के रूप में 26 दिसम्बर को मनाया जाता है।

हल्बा गण की शौर्य बलिदान का सम्मान ,शक्ति दिवस के रूप में 26 दिसम्बर को मनाया जाता है।

दंडकारण्य संदेश

नारायणपुर – क्या आप हल्बा विद्रोह को जानते है। नही तो दंडकारण्य दर्पण आपको हल्बा विद्रोह के बारे में आज बताएगा। इतिहास में इसके पहले भी कई विद्रोह हुए जिसको इतिहास में जितनी लिखा जाना या पढ़ा जाना चाहिए था उतना नहीं लिखा या पढ़ा गया।
विदित हो कि हल्बा विद्रोह (1774-1779) इ – 1) हल्बा विद्रोह (1774-1779) हुआ।

दुनिया के सभी भागो में जनजातियां है अफ्रीका के बाद सर्वाधिक जनजातियां भारत में है। जनजातीय बहुल राज्यों में छत्तीसगढ़ भी प्रमुख राज्य है ।
उसमे से एक जनजाति हल्बा भी है। परलकोट मुक्ति संग्राम के शहीद गैंद सिंह ( 1825 ई.) 20 जनवरी 1825 को अंग्रेजों ने फांसी दी थी। इस दिवस को गैंद सिंह शौर्य (शहादत) दिवस के रूप में मनाया जाता है।

शक्ति दिवस (पर्व) 26 दिसंबर 1998 हल्बा आदिवासी समाज का संछिप्त परिचय

5)18 गढ़ महासभा मुख्यालय (बड़ेडोंगर)
6)32 गढ़ महासभा (सुरैत भाई)मुख्यालय (बड़ेडोंगर ) 3) 36 गढ़ (बालोदीया) महासभा मुख्यालय( भिलाई ) महाराष्ट महासभा।

म.प्र. महासभा मुख्यालय (भोपाल पांचों महासभा ने मिल कर अखिलभारतीय हल्बा समाज का एक महासभा का आयोजन बड़े डोंगर में आदिवासी हल्बा समाज के आराध्य देवी माँ दंतेशवरी बड़ेडोंगर के छत्रछाया में दिनाँक 26 दिसंबर सन् 1998 दिन शनिवार के मध्य रात्रि को प्रारम्भ हुआ जिसका विषय पांचों महासभा का एकीकरण होना था। हल्बा आदिवासी समाज की आराध्य याया बड़ेडोंगर दंतेसीरी की आसिम कृपा से यह महासभा सफल रहा एवं अखिल भारतीय स्तर पे पांचों महासभा का एकीकरण हुआ।जिससे आदिवासी हल्बा समाज अखिल भारतीय स्तर पे एक महामंच का स्वरूप में एक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया और वर्तमान में पांचों महासभा का विलनि करण की प्रक्रिया एवं बातचीत जारी है| जिसमे रोटी – बेटी की रिश्ता में किसी तरह की सामाजिक अड़चने न आये ।आदि काल से हल्बा आदिवासी द्वारा आराध्य याया बड़ेडोंगर की दंतेसीरी की सेवा अर्चना करते आ रहे है एवं आराध्यदेवी की असीम कृपा से ।

शक्ति दिवस हलबा समुदाय के द्वारा हल्बा विद्रोह की स्मृति एवं पांचों हल्बा महासभाओं की एकीकरण के स्मृति में मनाया जाने वाला हलबा समुदाय की ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण दिन है हल्बा विद्रोह हलबा समुदाय के द्वारा तत्कालीन काकतीय वंश के राजा दरियाय देव व तत्कालीन सामंती के विरुद्ध तथा तत्कालीन प्राकृतिक दुर्भिक्ष के प्रतिशोध में किया गया नैसर्गिक विद्रोह था इस विद्रोह में पूरे हलबा समुदाय को बर्बरता से मार दिया गया था सिर्फ एक ही हलबा जान बचाकर भाग गया था। काकतीय राजा दरियाय देव हल्बा समुदाय के लिए ताड़ी झोंकनी तिहार चलवाया था। अजमेर सिंह जो कि इस विद्रोह का नेतृत्व कर रहा था उसकी भी इस विद्रोह में मृत्यु हो गई हलबा विद्रोहियों की इतनी बड़ी संघर्ष करने के बाद भी पराजय का मूल कारण यह था कि अन्य आदिवासी समुदाय का इसे समर्थन नहीं मिल सका विशेषकर दंडामी माड़िया। हलबा समुदाय के द्वारा दंडामि माड़ियाओं या अन्य जनजाति समुदाय के लोगों से अपेक्षित सहयोग मांगा ही नहीं गया आज वास्तव में शक्ति दिवस मनाना है वास्तव में शक्ति दिवस की महत्ता को जानना है तो बस्तर राज लंका कोट की सबसे पहली विद्रोह हल्बा विद्रोह 1774 से लेकर 1779 तक चली विद्रोह की सभी पक्षों को गंभीरता के साथ जाने पढ़े-लिखे समझे और इस विद्रोह से सबक प्राप्त करें तभी शक्ति दिवस मनाने का सार्थक जिम्मेदारी वहन कर रहे हैं।

सेवाजोहार, हल्बा जोहार
बस्तर लंकाकोट जोहार।।
मावली आया जोहार।
दंतेश्वरी आया जोहार।।

दंडकारण्य दर्पण

Bindesh Patra

युवा वहीं होता हैं, जिसके हाथों में शक्ति पैरों में गति, हृदय में ऊर्जा और आंखों में सपने होते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!