सरकार अच्छी शिक्षा की लाख दावे कर रही है, जमीनी हकीकत दयनीय है।
आज अगर किसी से भी छत्तीसगढ़ शिक्षा व्यवस्था की बात की जाए तो सब यही कहेंगे कि शिक्षा में सुधार हो रहा है, पर यहां कागजों में ही दबके रह गया है इसकी जमीनी हकीकत बहुत ही दुखद है शिक्षा व्यवस्था की इतनी दुर्दशा इतनी खामियां और नाकामियां है? लेकिन ये दोनों ही मूलभूत तत्व छत्तीसगढ़ शिक्षा व्यवस्था से नदारद है।
शिक्षा का अधिकार कानून आए एक अरसा बीत गया है। जितनी उम्मीदें लोगों और सरकार की इससे थीं उतनी फलीभूत नहीं हुईं। पहले से ही कंडम शिक्षा व्यवस्था का इसने और कबाड़ा किया है। आज बात इसी से जुड़ा एक पहलू है जिस पर बहुत कम लोगों का ध्यान गया है। ध्यान गया है तो सिर्फ भुक्तभोगियों का जिनकी कोई सुनवाई नहीं है।
नारायणपुर जिला के करमरी पंचायत में इसका जीता जागता सबूत नजर आ रहा है नारायणपुर जिला नक्सलियों का गढ़ माना जाता है जिस के आड़ में हजारों विकास कार्य ठप पड़ जाते हैं और इसका दुष्प्रभाव यहां पर ऐसा है अन्य भागों का आकलन आप स्वयं कर सकते हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 6 से 14 वर्ष तक के बच्चे को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की गारंटी देता है।
एक आम नागरिक के तौर पर देखें तो सरकार की कहीं भी बुरी मंशा नहीं दिखती। लेकिन सिस्टम की नीतिगत खामियों से जब पाला पड़ता है, तब इसकी जमीनी हकीकत बयां होती है।
करमरी पंचायत में शिक्षक देवेंद्र देवांगन से चर्चा के दौरान
स्कूल की शिक्षा व्यवस्था पर बात की गई तो बताया गांव में स्कूल है जहां पहली से पांचवी तक क्लास लगती है लगभग 36 बच्चे स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं स्कूल में शिक्षा अच्छी दी जाती है इंटरनेट के माध्यम से एडवांस टीवी पर पढ़ाया सिखाया जाता है बच्चे रोजी स्कूल आते हैं बच्चों के पालक भी समय-समय पर स्कूल में आते रहते हैं।
स्कूल व्यवस्था की बात कह तो स्कूल भवन कभी भी धराशाई हो सकती है स्कूल भवन में जगह जगह से दीवारों पर बड़ी-बड़ी दरारें आ गई है बच्चों का जान जोखिम में डालकर पढ़ाया जाता है स्कूल प्रांगण में शौचालय बनाया गया है शौचालय इतनी खराब क्वालिटी से बनाया गया है की शौचालय पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है शौचालय में बच्चों को जाने के लिए मना किया गया है। बच्चों को शौच खुले में जाना मजबूरी है ना ही स्कूल में बाउंड्री वाल है ना ही स्कूल तक पहुंचने के लिए सड़क है स्कूल तक पहुंचना है तो खेत की मेड पर चलकर जाना होता है।
स्कूल में एक ही शिक्षक पिछले 17 सालों से पदस्थ है ऐसी स्थिति में अगर शिक्षक बीमार हो गया या कोई जरूरी काम आ गई हो तो स्कूल भगवान भरोसे है नियम से स्कूलों में कम से कम 2 शिक्षकों की पोस्टिंग होनी चाहिए अगर एक शिक्षक को किसी काम से स्कूल से बाहर रहे तो दूसरा शिक्षक स्कूल संभाले।
करमरी पंचायत के दूसरे स्कूल भवन की हालत भी बहुत ही खराब है सरकार अच्छी शिक्षा के लाख दावे कर रही है पर जमीनी सच्चाई बहुत ही दुखदाई है।