नारायणपुर मधुमक्खी पालन पर करोड़ों रुपए खर्च की जिला प्रशासन ने पर आज तक न किसान लाभ ले पाए ना ही उपभोक्ता, आदिवासी आज भी जंगल पर शहद के लिए निर्भर है। जान जोखिम में डालकर इकट्ठा की जाती है शहद
नारायणपुर – जिला में अब तक मधुमक्खी पालन के नाम पर कई करोड़ खर्च कर चुका है जिला प्रशासन पर शहद उत्पादन में आज भी सबसे पीछे। हाल के बीते कुछ महीनों में नारायणपुर जिला में अबूझमाड़ और नारायणपुर जनपद के क्षेत्र अलग-अलग स्थानों में मधुमक्खी पालन के नाम पर जिला प्रशासन ने करोड़ों खर्च कर चुके हैं। पर किसानों को आज तक इसका लाभ नहीं मिल पाया।
किसानों को प्रशिक्षण के नाम पर हो रही है भ्रष्टाचार ।
आदिवासी और किसानों को प्रशिक्षित करने के लिए जिला में अब तक कई सौ करोड़ पैसा प्रशिक्षण के नाम पर निकाल चुकी कितने ही संस्था और एनजीओ को मधुमक्खी पालन के नाम से पैसे दिया गया और करोड़ों खर्च किए गए।
नारायणपुर जिला के आदिवासी शहद के लिए जंगल पर निर्भर है।
अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए आदिवासी वर्ग आज भी जंगल पर निर्भर हैं शहद के लिए जंगल पहाड़ों पर कई किलो मीटर का सफर करके शहद इकट्ठा करते हैं।
शहद इकट्ठा करने के लिए खड़ी चट्टाने बड़ी-बड़ी पेड़ों में बनाया मधुमक्खी छत्ता को निकालना आसान नहीं है।
जान जोखिम में डालकर शहद इकट्ठा करते हैं आदिवासी
हम शहद को बड़े चाव से मीठे स्वाद के रूप में खाते हैं पर शहद को इकट्ठा करना इतना आसान नहीं है जान हथेली पर रखकर शहद इकट्ठा की जाती है।
जंगल में जंगली मधुमक्खी बड़े खतरनाक होते हैं अगर शहद निकालने का ज्ञान नहीं है तो आप जान से हाथ धो बैठेंगे जंगली मधुमक्खी जहरीली होती है डंक मारकर इंसानों और जानवरों को घायल करता हैं ऐसे में अगर ज्यादा मात्रा में मधुमक्खी काटता है तो इंसानों की मौत भी हो जाती है जिसका डर हमेशा बना रहता है।
आदिवासियों का अपना अलग विज्ञान होता है परिस्थिति के अनुसार आदिवासी अपना ज्ञान लगाते है और वह कामयाब हो जाता है। कई दफा ऐसे चूक भी हो जाती है जिसके कारण मधुमक्खियों से वह घायल हो जाते हैं।
मधुमक्खी अपनी छत्तों को खड़ी चट्टान और पतले विशाल लंबे पेड़ों पर बनाते हैं जिसको निकालने में कड़ी मेहनत और बहुत ज्यादा समय लग जाता है ।
जंगल से इकट्ठा किया गया शहद गुणकारी औषधि युक्त होती है क्योंकि मधुमति जंगली फूलों, फलों और नदी झरने का ताजा पानी से शहद तैयार करता है। जो यहां के वातावरण में तैयार होता है।