ताड़_फल
खेत के मेड़ों पर , गांव के गलियारों में और आहर-पोखर के बांधों पर खड़ा लंबा,पतला और ऊंचा ताड़ बड़ा मनमोहक लगता है। प्राचीन समय में ताड़ के पत्ते संदेश भेजने के काम आते थे।विद्वत जनों की अलमारी इसके पत्ते से भरे हुए रहते थे।
खपरैल मकान का आधार होता है ताड़। पिछले कुछ समय से इसका उपयोग बेहद सीमित हो गया है। अब ना तो खपरैल मकान बन रहे हैं और ना ही पहले की तरह इसके पत्तों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
फिर भी गांव की गलियों में बच्चे इसे खाते और गाड़ी बनाकर घुमाते दिख जाएंगे। इसके बनाए गए पंखा-झाड़ू और घरेलू उपयोग में आने वाले अन्य घरेलू सामान
हाट-बाजार में आज भी मिलते हुए दिखते हैं।
हालांकि अभी तक ताड़ का व्यवसायीकरण नहीं हो पाया ।इसमें मौजूद अद्भुत औषधीय गुणों को जानकर अगर इसका उपयोग किया जाए तो यह भी किसानों के लिए आमदनी का एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है।
ताड़ नारियल की तरह लंबा और सीधा पेड़ होता है लेकिन ताड़ के वृक्ष में डालियाँ नहीं होती है वरन् तने से ही पत्ते निकलते हैं। आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि ताड़ का वृक्ष नर और नारी दो प्रकार के होते हैं। कहने का मतलब ये होता है कि ताड़ के नर वृक्ष पर सिर्फ फूल खिलते हैं और नारी वृक्ष पर नारियल की तरह गोल-गोल फल होते हैं। इसके तने को काटकर जो रस निकाला जाता है उसको ताड़ी कहा जाता है। ताड़ी के औषधीय गुणों के आधार पर आयुर्वेद में ताड़ के वृक्ष का उपयोग कई बीमारियों के लिए किया जाता है। इसके फूल एकलिंगी, कोमल गुलाबी अथवा पीले रंग के होते हैं। शरद-ऋतु में स्त्री-जाति के वृक्षों पर लगभग 15-20 सेमी व्यास के अण्डाकार, अर्धगोलाकार, रेशेदार तीन खण्ड वाले हल्के काले धूसर रंग के फल आते हैं। जो पकने पर पीले हो जाते हैं। कोमल या कच्ची अवस्था में फलों के भीतर कच्चे नारियल के समान दूधिया जल होता है। पकने पर भीतर का गूदा रेशेदार, लाल और पीले रंग के तथा मधुर होते हैं। प्रत्येक फल अण्डाकार कुछ चपटे, कड़े 1-3 बीज होते हैं।यह नवम्बर से जून महीने में फलता-फूलता है। मूत्रदाह एवं पेट में कृमि जैसे समस्याओं में अत्यधिक लाभकारी होता है।
ताड़ प्रकृति से मीठा, ठंडा, भारी, वात और पित्त को कम करने वाला, मूत्र रोग में फायदेमंद, अभिष्यंदि (आंख आना), बृंहण (Stoutning therapy) मे लाभकारी, बलकारक, मांसवर्धक (वजन बढ़ाने में) होता है। यह रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहना), व्रण (घाव), दाह (जलन), क्षत (चोट), शीतपित्त (पित्ती), विष, कुष्ठ, कृमि तथा रक्तदोष नाशक होता है।
इसके फल मधुर, बृंहण, शक्ति और वात दोनों बढ़ाने में सहायक, कृमि, कुष्ठ तथा रक्तपित्तसे राहत दिलाने में फायदेमंद होते हैं। इसके कच्चे फल मधुर, गुरु, ठंडे तासीर के, वात कम करने वाला तथा कफ बढ़ाने वाले होते हैं। यह दस्त से राहत दिलाने के साथ, बलकारक, वीर्यजनक (सीमेन का उत्पादन बढ़ाने में), मांसवर्धक होता है।
ताड़ का पका फल शुक्रल, अभिष्यंदि, मूत्र को बढ़ाने वाला, तन्द्रा को उत्पन्न करने वाला, देर से पचने वाला पित्त, रक्त तथा श्लेष्मा बढ़ाने वाला होता है।
ताड़ का आर्द्रफल मधुर, शीत, कफ बढ़ाने के साथ वातपित्त कम करने वाला तथा मूत्रल होता है। फलमज्जा मधुर, स्निग्ध, छोटी होती है। इसका बीज मधुर, शीतल, मूत्र को बढ़ाने वाला तथा वातपित्त को बढ़ाने में सहायक होता है।
ताड़ी (ताड़ का ताजा रस) वीर्य और श्लेष्मा को बढ़ाने वाला, अत्यंत मद उत्पन्न करने वाली, पुरानी होने पर खट्टी, पित्तवर्धक तथा वातशामक होती है। नवीन ताड़ी अत्यन्त मदकारक यानि नशीली होती है। खट्टी होने पर ताड़ी पित्त बढ़ाने वाली तथा वात कम करने वाली होती है। ताल की जड़ मधुर तथा रक्तपित्तनाशक होती है।
ताड़ वृक्ष के फायदे (Palm Tree Benefits in hindi)
ताड़ के गुणों के आधार पर आयुर्वेद में किन-किन बीमारियों के लिए इसको औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है ये जानने के लिए आगे चलते हैं-
पित्ताभिष्यन्द (आँखों की बीमारी) में फायदेमंद ताड़ का वृक्ष
आँख आने की बीमारी बहुत ही संक्रामक होती है। आँख आने पर उसके दर्द से राहत दिलाने में ताड़ का इस तरह से प्रयोग करने पर फायदा पहुँचता है। नवीन (ताजी) ताड़ी से सिद्ध किए हुए घी की 1-2 बूंदों को नेत्रों में डालने से पित्ताभिष्यन्द(Conjunctivitis) में लाभ होता है।
मूत्र त्याग की परेशानी से दिलाये राहत ताड़ का काढ़ा
मूत्र का रंग बदलने या मूत्रकृच्छ्र (मूत्र त्याग में कठिनता) हो जाए तो विदारीकंद, कदम्ब तथा ताड़ फल के काढ़ा एवं कल्क से सिद्ध दूध एवं घी का सेवन प्रशस्त है।
ताड़ के सेवन से हिक्का से मिले राहत (Palm for Hiccups in Hindi)
अगर बार-बार हिक्का आने से परेशान हैं तो ताड़ का इस तरह से सेवन करने पर जल्द ही मिलेगी राहत। 5-10 मिली ताड़ पत्रवृन्त का रस में 5-10 मिली ताड़ के जड़ का रस मिलाकर सेवन करने से हिचकी बन्द हो जाती है।
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प्लीहावृद्धि करे कम ताड़
अगर किसी बीमारी के कारण प्लीहा या स्प्लीन का आकार बढ़ गया है तो ताड़ का सेवन फायदेमंद साबित होता है। 65 मिग्रा ताड़ फूल के क्षार में गुड़ मिलाकर सेवन करने से प्लीहा का आकार कम होने में सहायता मिलती है।
हैजा से दिलाये निजात ताड़ का पेड़
अगर किसी कारणवश हैजा हो गया है तो ताड़ का सेवन करने से जल्दी आराम मिलता है।
ताड़ के मूल को चावल के पानी से पीसकर नाभि पर लेप करने से विसूचिका (कॉलरा) तथा अतिसार का शमन होता है।
पेट का कीड़ा निकालने में फायदेमंद ताड़ का पेड़
बच्चों को पेट में कीड़ा होने की बहुत समस्या होती है। इसके कारण बहुत तरह के बीमारियों के चपेट में आ जाते हैं। पेट से कीड़ा निकालने में ताड़ का इस तरह से सेवन करने पर लाभ मिलता है।
समान मात्रा में ताल जड़ के चूर्ण को कांजी में पीसकर थोड़ा गुनगुना करके नाभि पर लेप करने से पेट की कृमियों से राहत मिलती है।
लीवर के बीमारी में फायदेमंद ताड़ का वृक्ष
लीवर की बीमारी होने पर लीवर को स्वस्थ करने पर ताल बहुत काम आता है। इसका सेवन इस तरह से करने पर फायदा मिलता है-
-10-15 मिली ताल फल-स्वरस को पिलाने से यकृत्-विकारों (लीवर की बीमारियों) में लाभ होता है।
मूत्र संबंधी समस्या से दिलाये राहत ताड़ का फल
फलों के ताजा रस में मिश्री मिलाकर पिलाने से मूत्रकृच्छ्र या मूत्र करने में कठिनाई या मूत्र करने में जलन आदि समस्या में लाभ होता है। इसके अलावा ताड़ के कोमल जड़ से बने पेस्ट (1-2ग्राम) को ठंडा करके शालि चावल के धोवन के साथ पीने से मूत्राघात (मूत्र का रुक जाना) में लाभ होता है।
मूत्रातिसार में फायदेमंद ताड़
अत्यधिक मात्रा में मूत्र होने पर ताल का इस तरह से सेवन करने पर लाभ मिलता है। ताल जड़ के चूर्ण में समान मात्रा में खजूर, मुलेठी, विदारीकन्द तथा मिश्री का चूर्ण मिलाकर 2-4 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से मूत्रातिसार (अत्यधिक मात्रा में मूत्र होना) में लाभ होता है।
सुखप्रसवार्थ में लाभप्रद ताड़ का पेड़
ताल के जड़ का इस तरह से प्रयोग करने पर डिलीवरी के दौरान के प्रक्रिया में आसानी होती है। ताल जड़ को सूत्र में बाँधकर, आसन्न प्रसवा स्त्री जिस महिला की डिलीवरी होने वाला है) की कमर में बाँध देने से सूखपूर्वक प्रसव हो जाता है।
प्रमेह पीड़िका (डायबिटीज) में फायदेमंद ताड़
आजकल की भाग-दौड़ और तनाव भरी जिंदगी ऐसी हो गई है कि न खाने का नियम और न ही सोने का। फल ये होता है कि लोग को मधुमेह या डायबिटीज की शिकार होते जा रहे हैं। ताजी ताड़ी को चावल के आटे में मिलाकर, मंद आंच पर पकाकर पोटली जैसा बनाकर बांधने से प्रमेह पीड़िका तथा छोटे-मोटे घाव में लाभ मिलता है।
उन्माद में लाभकारी ताड़
मस्तिष्क के कार्य को बेहतर तरीके से करने में ताड़ मदद करता है। ताड़ की शाखाओं के 5-10 मिली रस में मधु मिला कर सेवन करने से उन्माद या पागलपन में लाभ होता है।
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ताड़ का उपयोगी भाग
आयुर्वेद में ताड़ वृक्ष के पत्ता, जड़, फल तथा फूल का प्रयोग औषधि के लिए सबसे ज्यादा किया जाता है।
ताड़ का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए ?
बीमारी के लिए ताड़ के सेवन और इस्तेमाल का तरीका पहले ही बताया गया है। अगर आप किसी ख़ास बीमारी के इलाज के लिए ताड़ का उपयोग कर रहे हैं तो आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह ज़रूर लें।
चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ताड़ के वृक्ष का
-20-40 मिली रस और
-1-3 ग्राम चूर्ण का सेवन कर सकते हैं।
ताड़ सेवन के दुष्परिणाम
ताड़ी का सेवन खांसी होने पर, ठंडा लगने पर, श्वास की नलिका में सूजन होने आदि में वर्जित होता है।
ताड़ का वृक्ष कहां पाया और उगाया जाता है ?
यह प्राय: सभी स्थानों पर विशेषकर शुष्क प्रदेशों में तथा समुद्र तटीय प्रदेशों में पाए जाता है। भारत के उष्ण एवं रेतीले प्रदेशों में इसके वृक्ष पाए जाते है। जिस प्रकार खजूर के वृक्ष से नीरा नामक रस प्राप्त होता है। उसी प्रकार ताड़ वृक्ष से ताड़ी नामक रस प्राप्त होता है। इस रस या ताड़ी को प्राप्त करने के लिए वृक्ष के सबसे ऊपर पत्तों के समूह के नीचे जो ताल मंजरी (Spadix) होती है, उसके निचले भाग पर लौह, सलाखा से छेद करके उस स्थान पर मिट्टी का पात्र या चूने के जल से पुते हुए कलईदार पात्र को बाँध देते हैं। कुछ ही समय पश्चात् यह रस पात्र में इकट्ठा हो जाता है। इसी रस को ताड़ी कहते हैं। स्त्री जाति के वृक्ष में नर जाति के वृक्ष की अपेक्षा ज्यादा मात्रा में ताड़ी प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त ताड़ के पत्रों से पंखे भी बनाए जाते है। ताड़ के पंखों की वायु उत्तम, त्रिदोष शामक होती है।
दंडकारण्य दर्पण