संस्कृति, सभ्यता बचाने के लिए अबूझमाड़ के लोग कर रहे गोटूल का संचालन, आदिवासियों की पुरानी संस्कृति और सभ्यता का उदय घोटूल से हुआ है घोटूल सैकड़ों साल पहले शिक्षा का केंद्र था।
नारायणपुरा: जैसे-जैसे हम शहरीकरण और आधुनिक दुनिया में प्रवेश करते जा रहे हैं हमको पता ही नहीं चलता कि हम पीछे क्या खो देते हैं जिसका समाज और मानव जाति पर बड़ा बुरा असर है होता है, हमारी दिनचर्या में मॉडल जिंदगी आने से हम अपने आप को पढ़े लिखे और शिक्षित समझ कर अपनी जिंदगी में विकास समझते हैं।
अबूझमाड़ के आदिवासियों का कहना है अबूझमाड़ में अब घोटुल प्रथा खत्म हो रही है जिसे बचाए रखना बहुत जरूरी है अगर हमारी संस्कृति नहीं बची तो पूरा अबूझमाड़ खत्म हो जाएगा।
दुनिया में कुछ ही देशों में यह संस्कृति बची हुई है जो प्रकृति को अपना भगवान मानते हैं प्रकृति से जुड़ाव होने के कारण प्रकृति का रक्षा करना आदिवासियों का पहला कर्तव्य है।
अबूझमाड़ में गोटूल का निर्माण करने से निश्चित तौर पर क्षेत्र में सुरक्षा का एक घेरा बनेगा जिससे अब जो माल की सुरक्षा होगी, घोटुल में कई प्रकार का शिक्षा दिया जाता है, विज्ञान, शिकार करना, जड़ी बूटियों से दवाई बनाना, जंगल, नदी ,नालो की सुरक्षा करना क्यों जरूरी है, जमीन का उपयोग किस प्रकार करनी चाहिए, सुरक्षा, कृषि, और नाच गान और बहुत सारी शिक्षा गोटूल से लिया जाता है।
देवी देवता करते हैं आदिवासियों का सुरक्षा यह मान्यता है कि अगर पूरे क्षेत्र में हम प्रकृति का सुरक्षा करें तो देवी देवता पूरी मानव जाति का सुरक्षा करती है जिसके कारण प्रकृति से जुड़े रहना बहुत जरूरी है।
आज की दुनिया में लोग प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं,
शहरीकरण और मॉडल जिंदगी में नदी नालों और तालाबों को गंदा करने का सीख मिलता है,
कृषि कार्य में अधिक मुनाफे के लिए अत्यधिक यूरिया और केमिकल का उपयोग किया जाता है जिसके कारण जमीन बंजर होती जा रही है, हवा में दुआ ही दुआ है शुद्ध ऑक्सीजन नहीं मिल पा रहा है कारण यहां है की अंधाधुन पेड़ों को काटना और सुरक्षा नहीं करना जिसके कारण तापमान में वृद्धि हो रही है, जो पूरे मानव जाति के लिए सबसे बड़ा खतरा है ।
अबूझमाड़ क्षेत्र में गोटाल परगना (पूरा क्षेत्र) के लगभग 45 गांव एक जगह पर भव्य घोटुल का निर्माण कर पुरानी संस्कृति से युवाओं को जोड़ रही है। ताकि यह सभ्यता और संस्कृति बची रहे।