सेमल के फायदे!
एक कहावत हैं पत्ता नहीं एक, फूल हज़ार क्या खूब छाई है, सेमल पर बहार ।”
वसंत के बाद प्रकृति की सारी खुबसूरती सेमल ही समाहित हो जाती है। फाल्गुन के मंद गर्मी में अनायास जब भी हमारी नजरें इस पौधे पर पड़ती है तो मन भाव विभोर हो जाता है।सेमल को संस्कृत में ‘शिम्बल’ और ‘शाल्मलि’ कहते हैं। यह पत्ते झाड़नेवाला एक बहुत बड़ा पेड़ होता है, जिसमें बड़े आकार और मोटे दलों के लाल फूल लगते है और जिसके फलों या डोडों में केवल रूई होती है, गूदा नहीं होता। इस पेड़ के धड़ और डालों में दूर दूर पर काँटे होते हैं; पत्ते लंबे और नुकीले होते हैं तथा एक एक डाँड़ी में पंजे की तरह पाँच-पाँच, छह-छह लगे होते हैं। फूल मोटे दल के, बड़े-बड़े और गहरे लाल रंग के होते हैं। फूलों में पाँच दल होते हैं और उनका घेरा बहुत बड़ा होता है।
फाल्गुन में जब इस पेड़ की पत्तियाँ बिल्कुल झड़ जाती हैं और यह ठूँठा ही रह जाता है तब यह इन्हीं लाल फूलों से गुछा हुआ दिखाई पड़ता है। दलों के झड़ जाने पर डोडा या फल रह जाता है जिसमें बहुत मुलायम और चमकीली रूई या घूए के भीतर बिनौले से बीज बंद रहते हैं।
इसकी लकड़ी पानी में खूब ठहरती है और नाव बनाने के काम में आती है। आयुर्वेद में सेमल बहुत उपकारी ओषधि मानी गई है। यह मधुर, कसैला, शीतल, हलका, स्निग्ध, पिच्छिल तथा शुक्र और कफ को बढ़ाने वाला कहा गया है। सेमल की छाल कसैली और कफनाशक; फूल शीतल, कड़वा, भारी, कसैला, वातकारक, मलरोधक, रूखा तथा कफ, पित्त और रक्तविकार को शांत करने वाला कहा गया है। फल के गुण फूल ही के समान हैं।
सेमल के नए पौधे की जड़ को सेमल का मूसला कहते हैं, जो बहुत पुष्टिकारक, कामोद्दीपक और नपुंसकता को दूर करनेवाला माना जाता है। सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है। यह अतिसार को दूर करनेवाला और बलकारक कहा गया है। इसके बीज स्निग्धताकारक और मदकारी होते है; और काँटों में फोड़े, फुंसी, घाव, छीप आदि दूर करने का गुण होता है।
फूलों के रंग के भेद से सेमल तीन प्रकार का माना गया है—एक तो साधारण लाल फूलोंवाला, दूसरा सफेद फूलों का और तीसरा पीले फूलों का। इनमें से पीले फूलों का सेमल कहीं देखने में नहीं आता। सेमल भारतवर्ष के गरम जंगलों में तथा बरमा, श्री लंका और मलाया में अधिकता से होता है।
#सेमल
सेमल के वृक्ष को कई लोग #सेमर’ भी कहते हैं.. संस्कृत में सेमल वृक्ष का नाम ‘#शाल्मली’ है….इसका वैज्ञानिक नाम ‘बामवेक्स सेइबा’ है, जबकि सामान्य रूप से इसे अंग्रेज़ी में ‘काँटन ट्री’ के नाम से भी पुकारा जाता है।
सेमल वृक्ष के फल, फूल, पत्तियाँ और छाल आदि का विभिन्न प्रकार के रोगों में प्रयोग किया जाता है।
#प्रदर रोग – सेमल के फलों को घी और सेंधा नमक के साथ साग के रूप में बनाकर खाने से स्त्रियों का प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
#जख्म – इस वृक्ष की छाल को पीस कर लेप करने से जख्म जल्दी भर जाता है।
#रक्तपित्त – सेमल के एक से दो ग्राम फूलों का चूर्ण शहद के साथ दिन में दो बार रोगी को देने से रक्तपित्त का रोग ठीक हो जाता है।
#अतिसार – सेमल वृक्ष के पत्तों के डंठल का ठंडा काढ़ा दिन में तीन बार 50 से 100 मिलीलीटर की मात्रा में रोगी को देने से अतिसार (दस्त) बंद हो जाते हैं।
#आग से जलने पर – इस वृक्ष की रूई को जला कर उसकी राख को शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है।
•नपुंसकता – दस ग्राम सेमल के फल का चूर्ण, दस ग्राम चीनी और 100 मिलीलीटर पानी के साथ घोट कर सुबह-शाम लेने से बाजीकरण होता है और नपुंसकता भी दूर हो जाती है।
पेचिश – यदि पेचिश आदि की शिकायत हो तो सेमल के फूल का ऊपरी बक्कल रात में पानी में भिगों दें। सुबह उस पानी में मिश्री मिलाकर पीने से पेचिश का रोग दूर हो जाता है।
प्रदर रोग – सेमल के फूलों की सब्जी देशी घी में भूनकर सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है।
•गिल्टी या ट्यूमर – सेमल के पत्तों को पीसकर लगाने या बाँधने से गाँठों की सूजन कम हो जाती है।
• रक्तप्रदर – इस वृक्ष की गोंद एक से तीन ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
•नपुंसकता – सेमल वृक्ष की छाल के 20 मिलीलीटर रस में मिश्री मिलाकर पीने से शरीर में वीर्य बढ़ता है ।।
दंडकारण्य दर्पण