भृंगराज: हर समस्या का एक समाधान माने जाने वाला औषधीय पौधा साधारण से दिखने वाले भृंगराज पौधे की उपयोगिता अनगिनत है। इस पेड़ का हर भाग इंसानी शरीर के काम आता है। सदियों से इसका प्रयोग आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के लिए किया जाता रहा है।

भृंगराज: हर समस्या का एक समाधान माने जाने वाला औषधीय पौधा
साधारण से दिखने वाले भृंगराज पौधे की उपयोगिता अनगिनत है। इस पेड़ का हर भाग इंसानी शरीर के काम आता है। सदियों से इसका प्रयोग आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के लिए किया जाता रहा है।

दंडकारण्य सेहत संदेश

साधारण से दिखने वाले भृंगराज पौधे की उपयोगिता अनगिनत है। इस पेड़ का हर भाग इंसानी शरीर के काम आता है।
सदियों से किसका प्रयोग आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के लिए किया जाता रहा है। बनवासी लोगों के लिए आज भी यह सबसे पसंदीदा औषधीय पौधा है जिसमें वह अपने ज्यादातर शारीरिक समस्याओं का समाधान ढूंढ़ लेते हैं।
भृंगराज में पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता होती है। इसमें बढ़ती उम्र के असर रोकने के भी गुण पाए जाते हैं। बालों की देखभाल के लिए भृंगराज एक बेहतर औषधि है। इसके इस्तेमाल से बालों का झड़ना कम हो जाता है। यही नहीं भृंगराज पेट के लिए भी काफी फायदेमंद है। एक –

पाचन ठीक करे
भृंगराज के नियमित सेवन से पाचन शक्ति बेहतर रहती है। यह बड़ी आंत में पाए जाने वाले विषैले पदार्थों को निकालने में मदद करता है।

लंबे होंगे बाल
कई लोगों में पित्त दोष होने के कारण बाल झड़ने लगते हैं और बालों से जुड़ी कई समस्याएं हो जाती हैं। भृंगराज के तेल को इन समस्याओं को दूर करने में काफी कारगर माना जाता है। यह बालों की ग्रोथ के लिए भी फायदेमंद है।

आंखों के लिए फायदेमंद

भृंगराज के पत्तों को छांव में सुखाकर पीस लें। उसमें से थोड़ा चूर्ण लेकर लगभग 3 ग्राम शहद और 3 ग्राम गाय का घी मिलाकर नियमित रूप से इसका सेवन करें। ऐसा करने से आंखों की रोशनी बेहतर होती है।

पीलिया का इलाज
भृंगराज को लिवर को स्वस्थ बनाए रखने का एक बेहतर टॉनिक माना जाता है। पीलिया जैसी बीमारी को ठीक करने में भी भृंगराज काफी प्रभावी है। लगभग 10 भृंगराज के पत्ते और 2 ग्राम काली मिर्च को महीन पीस लें। इस पेस्ट को छाछ में मिलाकर दो बार पिएं। फायदा होगा।

रूसी की समस्या दूर करता है
भृंगराज के तेल को रोज बालों में लगाने से रूसी की परेशानी नहीं होती। भृंगराज के तेल को लगाने से बाल जल्दी सफेद नहीं होते और बालों का प्राकृतिक रंग बना रहता है।

संक्रमण दूर करता है
इसके नियमित सेवन से गले और फेफड़े के संक्रमण में राहत मिलती है। इसके पीले पत्तों का रस और तिल के तेल की बराबर मात्रा में लेकर उबालें। छानकर आधे से लेकर एक चम्मच तक इसका सेवन दिन में दो बार करें। संक्रमण में फायदा होगा।

भृंगराज में बढ़ती उम्र के असर रोकने के भी गुण पाए जाते हैं। बालों की उचित देखभाल के लिए भृंगराज एक बेहतरीन औषधि है।

भृंगराज की खेती
यह एक सख्तजान फसल है तथा विभिन्न प्रकार की भूमियों पर होती है। जिस भूमि में नमी अधिक होती है उस भूमि पर यह भली प्रकार उगता है। लाल दोमट मिठ्ठी जिसमें कार्बनिक पदार्थ काफी हों वह मिठ्ठी इसकी कृषि के लिये सर्वोत्तम है।

जलवायु : यह सभी प्रकार की जलवायु में पनपती है। फिर भी गर्म जलवायु जिसमें तापक्रम 25 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्राी सेल्सियस तक रहता हो वहॉ इसकी वृद्वि व उपज अधिक होती है। इस फसल को बीज एवम् कटिंग दोनों तरीके से लगाया जाता है।

नर्सरी : इसके बीजों को 1ग3ग0.15 मीटर ऊॅचाई के उठे हुए (त्ंपेमक) नर्सरी बेड़ में पौध तैयारी हेतु प्रयुक्त किया जाता है। पहले बेड़ के स्थान की मिठ्ठी 1 फुट तक खोदते है फिर उसमें गाोबर खाद 2 कि.ग्रा. प्रति स्कवायरमीटर के हिसाब से इसमें देते हैं तथा कुछ बालू मिठ्ठी भी मिलाते है। 15 से.मी. ऊॅचा बेड़ तैयार किया जाता है। भृंगराज के बीजों को से.मी. कतार में बोया जाता है तथा इसके ऊपर बहुत पतली मिठ्ठी/खाद की परत बिछाई जाती है। स्प्रिंकलर अथवा झारे से इसमें पानी दिया जाता है। बीजों की बुआई के डेढ़-दो माह पश्‍चात् इन पौधों की प्रिकिंग खेत में लगाई जाती है।

कटिंग से पौध तैयारी : इस पौधे के सिरे वाली कटिंग ली जाती है जिसमें 5-6 नोड्स हों तथा 10-15 से.मी लम्बाई हो। इन कटिंग्स को अच्छी तरह तैयार नर्सरी बेड्स अथवा पोलिथिन बेग्स में लगाया जाता है। एक से डेढ़ माह की अवधि के मध्य इसकी जड़ें निकलने का कार्य पूरा हो जाता है तथा मुख्य खेत में इसे तब लगा दिया जाता है।

खेत की तैयारी : खेत जुताई कर उसमें पाटा चला दिया जाता है व खेत को तैयार किया जाता है। रोपण से पूर्व खेतं में एक बार पानी दिया जाता है जिससे नमी बनी रहें।

रोपण : नर्सरी में तैयार पौध को 15 -20 से.मी. पर खेत में रोप दिया जाता है।

सिंचाई : रोपण के पश्‍चात् एक माह तक सप्ताह में दो बार सिंचाई की जाती है। बाद मेें वर्षा तथा मृदा में नमी की स्थिति को देखते हुए इसमें साप्ताहिक सिंचाई की व्यवस्था कर दी जाती है।

निराई-गुड़ाई : पहली निराई पौध रोपण के 30-35 दिवस पश्‍चात् की जाती है। तथा दूसरी खरपतवार की वृद्वि को देखकर की जानी चाहिये। प्रत्येक कटाई/तुड़ाई के बाद निराई करनी चाहिये ताकि पौधों के बीच में खरपतवार नहीं पनप सके।

रोग : इसमें लीफ ब्लाईट तथा गॉल बनने के रोग हो सकते है। इसके लिये फसल पर 0.2 प्रतिशत डंदबव्रमइ का छिड़काव किया जाने पर रोग को नियंत्रित किया जा सकता है।

फसल कटाई : फसल लेने के लिये पौधे को जड़ से उखाड़ लिया जाता है। पौधे की जड़ को काटकर अलग कर देते है। ताजा हरी पत्तियों को कभी भी एक जगह इकठ्ठा नहीं करना चाहिये ना ही उन्हें बोरे में भरना चाहिये। पौधों को उचित साईज के टुकड़ो में काटकर उनको अच्छी तरह दूर-दूर फैलाकर सुखाना चाहिये। अच्छी तरह सुखाने की क्रिया सबसे महम्वपूर्ण है जिससे इसमें कीटाणु नहीं लगते तथा फसल सड़ती नहीं है। फसल कटाई का सबसे उत्तम समय तब है जब इसके बीज काले होने लगें। बीजों को एकत्रकर उन्हें बीनकर साफ कर सुखा लेते है।

उपज : औसत रूप से भृंगराज की खेती से एक एकड़ में 2400 कि.ग्रा. सूखे पौधें प्राप्त होते है।
आमदनी :- भृंगराज का बाजार भाव 10-15 रू. के मध्य रहता है अत: प्रति एकड़ 25000 रू. प्राप्ति होने की संभावना रहती है।

 दंडकारण्य दर्पण

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