काली_हल : इस दुर्लभ विशेषता में गुणवर्द्धक का भंडार है!
वर्षों से आदिवासी समाज के लोग काली हल्दी के लाभकारी गुणों से अवगत रहे हैं। उनके खानपान रीति रिवाज और यहां तक की अंधविश्वास और वशीकरण के रस्मों में भी इसका उपयोग करते आए हैं। निश्चित तौर पर काली हल्दी हमारे लिए सामान्य पीली हल्दी के अपेक्षा ज्यादा गुणकारी है। वैज्ञानिक शोधों से इस बात को बल मिला है की ल्यूकोडरमा, मिर्गी, कैंसर, एचआईवी जैसी बीमारियों की प्रतिरोधी क्षमता इस मसाले में उपलब्ध है।
काली हल्दी दिखने में अंदर से हल्के काले रंग की होती है। इसका पौधा केली के समान होता है।
आदिवासी समुदायों के द्वारा इसका उपयोग निमोनिया, खांसी और ठंड के उपचार के लिए किया जाता है। बच्चों और वयस्कों में बुखार और अस्थमा के लिए इसका उपयोग किया जाता है। इसके राइजोम का पाउडर फेस पैक के रूप में किया जाता है। इसके ताजे राइजोम को माथे पर पेस्ट के रूप में लगाते है। जो माइग्रेन से राहते के लिए या मस्तिष्क और घावों पर शरीर के लिए किया जाता है। सांप और बिच्छू के काटने पर इसके राइजोम का पेस्ट लगाया जाता है। ल्यूकोडार्मा, मिर्गी, कैंसर, और एच आई वी एड्स की रोकथाम में भी यह उपयोग होती है।
काली हल्दी का पौधा केली के समान होता है। काली हल्दी या नरकचूर एक औषधीय महत्व का पौधा है। जो कि बंगाल में वृहद रूप से उगाया जाता है। इसका उपयोग रोग नाशक व सौंदर्य प्रसाधन दोनों रूप में किया जाता है। वानस्पतिक नाम Curcumaa, केसीया या अंग्रेजी में ब्लेक जे डोरी भी कहते है। यह जिन्नी वरेसी कुल का सदस्य है। इसका पौधा तना रहित 30-60 सेमी ऊंचा होता है। पत्तियां चौड़ी गोलाकार ऊपरी सतह पर नीले बैंगनी रंग की मध्य शिरा युक्त होती है। पुष्प गुलाबी किनारे की ओर रंग के सहपत्र लिए होते है। राइजोम बेलनाकार गहरे रंग के सूखने पर कठोर क्रिस्टल बनाते है। राइजोम का रंग कलिमा युक्त होता है।
काली हल्दी की खेती
जलवायु
काली हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु उष्ण होती है। तापमान 15 से 40 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
भूमि की तैयारी
काली हल्दी दोमट, बुलई, मटियार, प्रकार की भूमि में अच्छे से उगाई जा सकती है। वर्षा के पूर्व जून के प्रथम सप्ताह में 2-4 बार जुताई करके मिट्टी भुरभुरी बना लें तथा जल निकासी की अच्छी व्यवस्था कर लें। खेत में 20 टन प्रति हेक्येटर की दर से गोबर की खाद मिला दें।
बोने का समय व विधि
बोने के लिए पुराने राइजोम को जिन्हें ग्रीष्म काल में नमीयुक्त स्थान पर रेत में दवा कर संग्रह किया गया है उनको उपयोग में लाते है। इन्हें नये अंकुरण आने पर छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लिया जाता है। जिन्हें तैयार की गई भूमि में 30 सेमी, कतार से कतार 20 सेमी पौधे से पौधे के अंतराल पर 5-10 सेमी गहराई पर रोपा जाता है। 15-20q राइजोम 1 हे रोपने में लगते है। 2-3 बार निदाई करने से फसल वृद्धि अच्छी होती है। बरसात के बाद माह में 2 बार सिंचाई करना उपयुक्त होता है।
रोग व कीट
काली हल्दी में रोग व कीट का प्रकोप नहीं देखा गया है।
खुदाई व संसाधन व उत्पादन
काली हल्दी की फसल अवधी 8 से 8 1/2 माह में तैय़ार होती है। प्रकदों को सावधानीपूर्वक बिना क्षति पहुंचाए खोद कर निकालें व साफ करके छायादार सूखे स्थान पर सुखाएं। अच्छी किस्म के राइजोम को 2-4 सेमी के टुकड़ों में काटकर सुखा कर रखें जो सूख कर कठोर हो जाते है। ताजे कंदों का उत्पादन 50 प्रति हेक्टेयर तक होता है।