देश का पहला पॉयलट प्रोजेक्ट…कानपुर आईआईटी ने की मदद से मैनपुर में बनेगा दोना-पत्तल
{दो माह चला शोध : जर्मनी के बाद भारत में यह पहला प्रयोग, दो माह तक हुआ शोध, आईटी कानपुर के इन्क्यूबेटेड स्टार्टअप्स, नेक्स्टीन द्वारा नई मोल्डिंग मशीन तैयार की जा रही
{ स्थानीय उपज को महत्व : माहुल के पत्तों से तैयार दोना-पत्तल को अब कागज या लिंट से नहीं बल्कि स्थानीय लघु वनोपज से बने पर्यावरण के अनुकूल और खाद्य गोंद के लेप से कव्हर किया जाएगाआई
पुरुषोत्तम पात्र/देवभोग। स्वरोजगार से जुड़ी इस पिछड़े आदिवासी अंचल के लिए एक अच्छी खबर सामने आई है। वन धन विकास केंद्र में खाद्य गोंद तकनीक से माहुल पत्ती से दोना-थाली बनाई जाएगी। दो महीने के शोध के बाद देश का पहला पॉयलट प्रोजेक्ट मैनपुर केंद्र में शुरू होने जा रहा है। इसके लिए आईआईटी कानपुर के इन्क्यूबेटेड स्टार्टअप्स, नेक्स्टीन द्वारा नई मोल्डिंग मशीन तैयार की जा रही है। दरअसल फर्स्ट आईआईटी कानपुर छत्तीसगढ़ में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध लघु वनोपज पर लगातार शोध कर रहा है, यह प्रयोग इसी का नतीजा है। जर्मनी के बाद इस तकनीक से दोना-पत्तल बनाने का देश का यह पहला प्रोजेक्ट है। इससे क्षेत्र में पहले से कार्यरत महिला समूहों की दोना-पत्तल बनाने की न केवल क्षमता बढ़ेगी बल्कि लागत भी घटेगी, यानी मुनाफा भी बढ़ेगा। नए साल में संभवत: ये यूनिट चालू हो जाएगी।
माहुल के पत्तों से तैयार दोना-पत्तल को अब कागज या लिंट से नहीं बल्कि स्थानीय लघु वनोपज से बने पर्यावरण के अनुकूल और खाद्य गोंद के लेप से कव्हर किया जाएगा। ऐसी तकनीक केवल जर्मनी में ही उपलब्ध है लेकिन अब यह आईआईटी कानपुर की शोध टीम और उसके इन्क्यूबेटेड स्टार्टअप्स की कड़ी मेहनत से यहां उपलब्ध होने जा रही है। दो महीने पहले से टीम के 20 सदस्य लगातार इस पर शोध कर रहे थे, जबकि एक टीम मैनपुर में रहकर शोध का ट्रायल कर रही थी।
प्रदेश के 9 जिलों में भी इसे लागू किया जाएगा
फर्स्ट आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ प्रबंधक अंकित सक्सेना ने इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि आदिवासियों के लिए टेक फार ट्राइबल्स के तहत फर्स्ट आईआईटी कानपुर छत्तीसगढ़ में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध लघु वनोपज पर लगातार शोध कर रहा है। उसी कड़ी में ही दोना-पत्तल की नई तकनीक पर शोध किया गया है। विकसित तकनीक जर्मन प्रौद्योगिकी की तुलना में बहुत अधिक प्रभावी और कुशल है। आने वाले महीनों में मैनपुर केंद्र में उत्पादन शुरू हो जाएगा। सरकार की मंजूरी के बाद इसी तरह की तकनीक राज्य के अन्य 9 जिलों के वन धन विकास केंद्रों में भी लागू की जाएगी।
किफायती और पर्यावरण हितैषी, लागत भी 1 रुपए कम
अंकित सक्सेना ने बताया कि खाद्य गोंद पूरी तरह से प्राकृतिक होगा, जो स्थानीय वन उत्पादों से तैयार किया जाएगा। कुल लागत में भी काफी कमी आएगी। पहले एक पत्तल की लागत अधिकतम ढाई रुपए आती थी, जो अब घटकर डेढ़ रुपए तक होगी।अप्रमाणित पेपर व पुट्ठे के इस्तेमाल से सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ने की संभावना बनी रहती थी, जो अब नई तकनीकी से पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगी।
बिजली गुल होने पर भी 10 घंटे तक चलेगी मशीन
शोध में लगी तकनीकी टीम के अंशु सिंह ने बताया कि केंद्र में स्थापित मोल्डिंग मशीन की जगह नई तकनीक के लिए नई मोल्डिंग मशीन का डिजाइन तैयार किया गया है। जल्द ही इसे सभी चयनित केंद्रों में स्थापित किया जा रहा है। ये मशीनें पहले से ज्यादा हाईटेक हैं। लो वोल्टेज या बिजली गुल होने पर भी मशीन एक दिन में लगातार 8 से 10 घंटे तक चल सकेगी। मशीन एक दिन में 5 से 7 हजार लीफ प्लेट बनाने की क्षमता रखती है।
प्लास्टिक का विकल्प देगी यह तकनीक
अंकित सक्सेना ने कहा कि आदिवासी देश की आबादी में 9% का योगदान करते हैं और यदि प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है तो विकसित तकनीक आदिवासियों को प्लास्टिक की खपत को कम करके अन्य 91% की सेवा करने में सक्षम बनाएगी। बदले में बड़े पैमाने पर आजीविका के अवसर प्रदान करेगी।
क्या है स्टार्टअप इन्क्यूबेटर
स्टार्टअप इन्क्यूबेटर एक सहयोगी कार्यक्रम है जिसे नए स्टार्टअप को सफल बनाने में मदद करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। स्टार्टअप इन्क्यूबेटर का एकमात्र उद्देश्य उद्यमियों को अपना व्यवसाय बढ़ाने में मदद करना है। स्टार्टअप इन्क्यूबेटर आमतौर पर गैर-लाभकारी संगठन होते हैं, जो आमतौर पर सार्वजनिक और निजी दोनों संस्थाओं द्वारा चलाए जाते हैं।
50 हजार की कमाई सीधे 2 लाख प्लस में जाएगी
विगत दो साल से मैनपुर में 300 महिलाएं दोना पत्तल उत्पादन काम में लगी हुई हैं। अब तक ये महिलाएं माहुल पत्ते का दोना पत्तल बनाती थीं। पत्तल में पुट्ठे या मोटे पेपर का इस्तेमाल होता था। बिजली ने साथ दिया तो महीने में 60 से 70 हजार पत्तल बनाकर 50 हजार की कमाई कर लेती थीं। अब नई तकनीकी से उत्पादन ढाई लाख हो जाएगा और मुनाफा भी 2 लाख प्लस में होगा। चूंकि इसमें सेहत को प्रभावित करने वाले पेपर का इस्तेमाल नहीं होगा, ऐसे में इसकी बिक्री भी ज्यादा होने की संभावना है। माना जा रहा है कि उत्पादन बढ़ने से और भी ज्यादा महिलाओं को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा।