पोई भाजी: सबसे फायदेमंद साग जिसके बारे में बेहद कम लोग को जानकारी है!
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आमतौर पर जब साग की बात आती है तो हमारे ज़ेहन में पालक का नाम आता है।ज्यादातर लोगो को पता है कि पालक में आयरन की भरपूर मात्रा पाई जाती है जो इंसानी स्वास्थ्य के लिए श्रेस्कर है। आपको जानकर हैरानी होगी कि पोई साग में पालक अपेक्षा कई गुना ज्यादा है आयरन।इस साग का उपयोग बेहद कम है क्योंकि लोग जानते नहीं इसके बारे में। आइए इस पोस्ट में इस बहुमूल्य साग की जानकारी जन-जन तक पहुंचाते हैं।
पोई एक सदाबहार बहुवर्षीय लता है।इसकी पत्तियाँ मोटी, मांसल तथा हरी होतीं हैं जिनका शाक-सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है। यह प्राकृतिक रूप से उगती हैै तथा वृक्षों और झाड़ियोंं का सहारा लेकर ऊपर चढ जाती है। इसके फल मकोय केे फलों जैसे दिखते हैैं जो पकने पर गाढ़े जामुनी रंग के हो जातेे है। इन पके फलों सेे गुलाबी आभाा लिये वाल रंग का रस निकलता है।
पोई की लता और पत्तियाँ
पोई के पत्तों का पालक के पत्तों जैसे पकौड़ा बनाने, साग बनाने में उपयोग होता है । इसे दाल में डालकर भी खाया जाता है ।
पोई की दो किस्में हमारे आसपास मिलती हैं एक हरी और दूसरी लाल। लाल किस्म की टहनियां लाल होती हैं और पत्तियों का निचला हिस्सा भी हल्का जामुनी, लाल होता है। ऐसा इसमें पाए जाने वाले एन्टीऑक्सीडेन्ट पदार्थ एंथोसायनीन के कारण होता है। इसका एक नाम देसी पालक (इंडियन स्पीनेच) भी है। जो पालक हम अधिकतर बाजार से खरीदकर खाते हैं वह तो पर्सियन साग यानी ईरानी पालक है। यह देश के सभी प्रांतों में घर आंगन के बगीचे में बोई जाती है या फिर आसपास अपने आप भी उग जाती है। इसका फैलाव चिडिय़ा, बुलबुलों की मदद से होता है जो इसके पके जामुनी फल खाते हैं और बीजों को यहां- वहां बिखेरते हैं। मैंने सोचा चलो आज खनिज तत्वों, विशेषकर लौह तत्व को लेकर जरा देसी- विदेशी पालकों की तुलना करें। इसके परिणाम से मुझे तो आश्चर्य हुआ ही और आपको भी होगा। क्योंकि इस मामले में यह देसी पालक जिसके पत्ते दिल के आकार के हैं, हाथ के आकार के पत्तों वाले पालक से कहीं बेहतर है।
पालक में प्रति 100 ग्राम लौह तत्व 1.7 से 2.7 मिलीग्राम और पोई में 10 मिलीग्राम है। यही हाल फॉस्फोरस के भी हैं – 100-100 ग्राम पालक और पोई में क्रमश: 21 में 35 मिलीग्राम फॉस्फोरस है। पोई में विटामिन सी भी लगभग तीन गुना ज्यादा है। सवाल यह भी है कि जो कुछ मात्रा पालक में लौह तत्व की है वह हमारे शरीर को लगता कितना है। पता चला कि पालक में जो कुछ भी लौह है वह शरीर में बहुत कम (लगभग 10 प्रतिशत) ही अवशोषित होता है यानि 100 ग्राम पालक के लौह का 0.25 मिलीग्राम ही अवशोषित होता है। यह भी पता चलता है कि पालक में जो अधिक मात्रा में ऑक्जलेट है वह भी लौह अवशोषण की राह में रोड़ा है। यह ऑक्जलेट आयरन को फेरस ऑक्जलेट में बदल देता है जो शरीर के किसी काम का नहीं। वैसे कुछ अध्ययन कहते हैं कि भोजन में ऑक्जेलिक अम्ल का उपयोग करने से लौह का अवशोषण बढ़ता है। यदि यह सच है कि विटामिन सी लौह तत्व के अवशोषण को बढ़ाता है तो इस लिहाज से भी पोई पालक से कहीं ज्यादा बेहतर है। क्योंकि इसमें लौह और विटामिन सी दोनों अधिक मात्रा में है।
कहना यह है कि पालक को लोहे की आशा में नहीं बल्कि खनिज लवण, विटामिन्स एवं केरोटिनॉइड्स के लिए खाइए और पोई भी खाइए। पालक का हाथ और पोई का दिल दोनों मिलें तो फिर क्या मुश्किल।
@दंडकारण्य_दर्पण