प्रकृति संरक्षण और पुरखों के स्मरण का महापर्व अकति (लोकभाषा हल्बी में)
अकति तिहार/आमाजोगानी/बीज निकरानी तिहार –
बस्तर चो परंपरा ने आदिवासी जेबे नुआ फसल के आपलो कुलदेव -देबी,पितर (डूमा) लगे चेघावसोत तेबेय हुन फुल-पान ,फर, सागभाजी के अपन मन खासोत।एकेय हुन फुल -पान,फर चो जोगानी बलसोत।
अकतई ने हल्बा समाज आमाजोगानी चो तिहार के मानेसे मान्तर माटी -तिहार अकतई ले पुरे होयसे आउर आमा माटी ने पहिली जोगेसे काय काजे कि गांव ने सपाय जात चो लोग रसत आरू आपलो जात चो रीत रूसुम के मानसोत।
उपजास (परकिरती)चो मान-
अकतई दिन घरे ले जाउन नंदी धड़ी खोदरा खनसोत आउर एक भांवर जामडारा के गाड़सोत।नुआ हांडी चो कलसा नेउन हुथा मंजी खोदरा ने मंडावसोत फेर एकाइस ठन फरसापान चो दोनी बनाउन हुन दोनी ने चार,तीली,मूंग,उड़ीद,चाउर आरू खापलो आमा के राखसोत ,ए दोनी ने घीव,पाकलो केरा चो गुदा,दुध,दही के बल मिसावसोत।एक ठन फरसापान चो दिया के बारून हुथा राखसोत।नुआ हांडी में हुनी खोदरा ले पानी भरून आरू दोना ने फुल-पान धरून सपाय कुटुम चो लोग
महू,पीकड़ी,बड़,आमा,सेहरा,बेहड़ा,बेल,कुड़ई, कोलियारी,पनका पिकड़ चो रुक मन ने जासोत।चाउर के छिचुन रूक चो बूंद ने पानी देसोत।फेर हुनी पानी के चरन अमरित असन मुंडी में धरसोत।एबे चो समया ने इतरो रुक एकेच ठान ने मिरूक नी सके तेचोय काजे पांच ठन रुक ने बले पानी दिलेक चलेसे।
पितरदेव चो सुमरन, सेवा-अरजी
रूकमन के पानी देउन पानी घाट में फेर एसत आउर सपाय कुटुम चो लोग बिरन बुटा आरू छेना के पानी धड़ी राखसोत।पितरदेव (डूमा) के सुमरून दछिन दिसा बाट पुर करून पितरदेव चो नाव ले पानी देसोत।पांय पड़ून एसोत आरू खापलो आमा ने गुर, दुध,दही,घीव, केरा के मिसाउन नरहेड़ संग पहिली परसाद भांचा -भचूरा के देसोत।हुनचो पाछे सपाय खासोत।खाउन सरलो पाछे सपाय सगा मिलून -मिसुन आउर चाउर टीकून पांय पड़ा -पड़ी होसत। माईलोगन बल दार धउक पानी घाट जासोत आउर एक -दूसर के धवलो दार चो टीका लगाउन अकतई तिहार चो सुबकामना देसोत।
सुकसी,मछरी,आमा साग चो मान –
नंदी घाट ले पानी नवा हांडी में आनसोत आउर घरे एउन चार ठन ढेला के मंडासोत।पितरदेव चो नाव ले होम आहार देसोत।पहिली ढेला असहाड़ चो नाव ले,दूसर ढेला सावन,तीसर ढेला भादंव आउर हुनचो पाछे कुंवार महीना चो नाव ले मंडावसोत।
ए चार ठन ढेला के मंडाउन हुनचो उपरे आनलो पानी कुंडी के मंडावसोत।एचो पाछे घरे माईलोगन भात-पेज रांधुन रसोत।ए दिन समदी -सगा,भांचा भचूरा सपाय के नेवता देसोत।घर – घर आमा चो साग आउर दार बोबो बनेसे।आमा संग सुकसी झोर नाहले मछरी बनावसोत।ए दिन के कुकड़ा -बोकड़ा खावतो नोहाय।
बरसा चो मुर जानुक सगुन बिचारतो उवाट
दूसर दिन ढेला उपरे राखलो माटी चो कलसा के देखसोत कि कोन -कोन ढेला फिजलिसे आरू हुनी सुतुर ने सगुन विचारसोत।चारो ढेला फिजलेक चारो महीना बरसा माने खूबे बरसा,असने तीन ठन ढेला फिजलो ने खूबे बरसा।दुय ठन ढेला फिजलो ने बरोबर बरसा होयसे आरू गोटोक ढेला फिजलेक कमती बरसा नाहले खंड बरसा होयदे बलसोत।आगर बरसा होलेक किरसान मन माई धान के बुनसोत।कमती आरू पातर बरसा होलोने बारंगी धान नाहलेक कमती दिन ने पाकतो बिती धान के बुनसोत।
अकतई ने हल्बा समाज बीज धान के निकरायसे आरू एई दिन के सुब मानून कई ठन बिहा बल होयसे।ए दिन चो बिहा काजे पांजी दखुन बिचार करूक नी पड़े।
असने पुरखती दांय ले हल्बा समाज हरिक मन ले उपजास चो परब के मानेसे आरू आपलो जीवना के सुफल करेसे।
आजि अकतई चो सुब दिन आय ।जमाय सगा-समाज के पुरखा सक्ति चो आसीस मिरो। पुरखा के सुमरन करूं आरू उपजास (परकिरती) चो मान के राखूं।ए तिहार चो हरिक मन ले सुबकामना आरू बधाई।
साभार
लिखलो मनुक
भागेश्वर पात्र
लोक साहित्यकार एवं सामाजिक शोधकर्ता, नारायणपुर मो.नं.-9407630523